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कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी आज किसानों की प्रमुख मांग बन गई है. यह कहा जा र

MSP history: हरित क्रांति के दौर में आई थी MSP, घटती-बढ़ती रही है लिस्ट

कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी आज किसानों की प्रमुख मांग बन गई है. यह कहा जा रहा है कि पारित हुए कृषि बिल में यदि एमएसपी पर फसल बिक्री की गारंटी का प्रावधान होता तो किसान संतुष्ट हो सकते थे. आइए जानते हैं कि क्या है यह व्यवस्था औरयह व्यवस्था कब से शुरू हुई?हरितक्रांतिकेदौरमेंआईथीMSPघटतीबढ़तीरहीहैलिस्टन्यूनतम समर्थन मूल्य वह न्यूनतम मूल्य होता है, जिस पर सरकार किसानों द्वारा बेचे जाने वाले अनाज की पूरी मात्रा खरीदने के लिये तैयार रहती है. यह एक तरह से ​कृषि उपजों के लिए आधार मूल्य का काम करता है और यह अपेक्षा की जाती है कि बाजार में भी फसलों का दाम किसान को इससे कम नहीं मिलेगा. इससे उम्मीद की जाती है कि किसान बिचौलियों के शोषण से बचेगा.न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की संस्तुति पर साल मेंदो बार रबी और खरीफ की फसल के लिए की जाती है. यह ऐलान फसलोंकी बुवाई से पहले किया जाता है.इससे किसानों को फसलों के एक वाजिब दाम मिलने की उम्मीद रहती है और साथ ही सार्व​जनिक वितरण प्रणाली के द्वारा उपभोक्ताओं को पर्याप्त मात्रा में अनाज भी मिल जाता है, क्योंकि सरकार एमएसपी पर बड़ी मात्रा में अनाज की खरीद करती है. इससे किसानों में एक तरह से वाजिब कीमत मिलने का भरोसा पैदा होता है और इसीलिए वे विविध तरह की फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं.भारत में सबसे पहले साल 1966-67 में गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई थी. तब देश में हरित क्रांति की शुरुआत हुई थी और अनाज की तंगी से जूझ रहे देश में कृ​षि उत्पादन बढ़ाना सबसे प्रमुख लक्ष्य था. फसलों की एमएसपी तय करने में मुख्य आधार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश होती है. इसके अलावा सरकार राज्य सरकारों और संबंधित मंत्रालयों की राय भी जानती है. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की स्थापना साल 1965 में की गई थी.पहले इसका नाम कृषि कीमत आयोग था जिसे 1985 में बदला गया.यह कृषि मंत्रालय से जुड़ा है. इसका काम ही है कि फसलों की लागत के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश सरकार को करना.फिलहाल CACP द्वारा 23 फसलों के एमएसपी की सिफारिश की जाती है. इनमें 7 अनाज, 5 तरह की दालें, 7 तरह के तिलहन और 4 तरह की नकदी फसलें हैं.इस तरह एमएसपी की शुरुआत सिर्फ गेहूं से हुई थी और आज इसमें 23 फसलें हो गई हैं. इस सूची में समय-समय पर सरकारें बदलाव भी करती हैं. जैसे साल 2000 के आसपास इसमें 24 फसलें शामिल थीं.अब गन्ने की एमएसपी राज्य सरकारों द्वारा तय की जाती है.आयोग जिला, राज्य और देश के स्तर पर सूक्ष्म स्तर पर संग्रहित डेटा जमा कर इस्तेमाल में लाता है. एमएसपी के लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रति हेक्टेयर लागत और कृषि के अन्य खर्च और उनमें आने वाले बदलाव, देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रति क्विंटल उत्पादन की लागत और उसमें होने वाले परिवर्तन, उपज, आयात, निर्यात और घरेलू उपलब्धता, मांग, खपत, भंडारण की लागत आदि सभी जानकारियों को आधार बनाया जाता है.स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की थी कि कृषि पैदावार का न्यूनतम समर्थन मूल्य उसकी लागत से कम से कम 50 फीसदी ज्यादा होनाचाहिए. इस सिफारिश को भी ध्यान में रखा जाता है.

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