टीआरएस के वर्किंग प्रेसीडेंट और के.चंद्रशेखर राव (के.सी.आर) के बेहद करीबी के.टी. रामाराव ने वारंगल में एक चुनावी सभा के संबोधन की शुरुआत एक श्लोगन से की. श्लोगन था,लोकसभाचुनावरावकेदिल्लीदांवपरमुहरलगाएगीतेलंगानाकीआवाम ''शार प्लस कार आंटे डेल्हीलो सरकार.'' इसका हिंदी तर्जुमा कुछ इस तरह से है, केसीआर की पार्टी के चुनाव चिह्न कार में मुहर लगाओ, यह कार प्रतीक है तेलंगाना से दिल्ली तक के महत्वपूर्ण सफर की. कहने का मतलब था कि टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्री समिति) को जिताओगे के तो दिल्ली के दरबार में बड़ा हिस्सा मिलने का सुख पाओगे. दरअसल राज्य की टीआरएस सरकार इन दिनों चुनाव प्रचार के दौरान देश के पीएम को बनवाने में अहम भूमिका निभाने के लिए इस जीत को बड़ा बनाने की अपील मतदाताओं से कर रही है. जनता से वादा किया जा रहा है कि अगर राज्य की 17 लोकसभा सीटों में से 16 सीटें केसीआर को मिलती हैं तो तेलंगाना की जनता की आवाज दिल्ली को सुननी ही पड़ेगी.तेलंगाना टुडे को दिए एक साक्षात्कार में के.टी.आर ने तेलंगाना को देश का ताकतवर राज्य करार देते हुए कहा एक पुरानी कहावत है, '' पं.बंगाल जो आज सोच रहा है पूरा भारत वो कल सोचेगा.'' लेकिन अब समय बदल गया है तेलंगाना जो आज सोच रहा है पूरा देश कल सोचेगा. यानी राज्य में लगातार यह प्रचार किया जा रहा है कि टीआरएस को जिताओगे के तो दिल्ली दरबार में बड़ा हिस्सा मिलने का सुख पाओगे. हां, और इस कहावत को पुराना बताकर के.टी. राव ने लगातार गठबंधन की धुरी बन रही ममता बनर्जी पर भी हल्के से निशाना साध दिया है.के.चंद्रशेखर राव दांव चलने के महारथी हैं. मौके की नजाकत को वह खूब समझते हैं. पिछले साल के आखिर में उन्होंने राज्य विधासभा उस वक्त भंग कर दी जब पांच साल पूरे होने में कुछ महीने ही बाकी थे. दरअसल उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे. पहला वे नहीं चाहते थे कि लोकसभा चुनाव के साथ उनके राज्य में चुनाव हो. क्योंकि अगर ऐसा होता तो राज्य के नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे हावी होते. मौजूदा प्रधानमंत्री के चुनावी मोड को हाल ही में उन्होंने देखा था सो, वे जानते थे चुनाव के दौरान भाजपानीत केंद्र सरकार क्या-क्या पत्ते खोलेगी इसका अंदाजा लगाना मुमकिन नहीं. केंद्र के प्रचार का फायदा उनके राज्य में भाजपा को मिल सकता था. टीडीपी और कांग्रेस की बढ़ती नजदीकियां भी उनके निशाने पर थीं.अब लोकसभा चुनाव में भी केसीआर की पार्टी लोगों को दिल्ली के सपने दिखाने से नहीं चूक रही. दरअसल टीआरएस लगातार यह प्रचार कर रही है कि अगर 17 में 16 सीटें केसीआर की झोली में गिरती हैं तो राज्य के मुखिया के हाथों में दिल्ली की सरकार बनाने में उनकी अहम भूमिका होगी. वहां के गली मोहल्लो में ''तेलंगाना में शार प्लस कार आंटे डेल्हीलो सरकार'' यानी केसीआर को वोट दो और टीआरएस के चुनाव चिह्न कार का मतलब दिल्ली में अपनी सरकार'' का नारा गूंज रहा है. टीआरएस के वर्किंग प्रेसीडेंट और केसीआर के बेहद करीबी के.टी. रामाराव ने चुनाव प्रचार की कमान थाम रखी है.मजेदार बात यह है कि जिस पं. बंगाल का जिक्र के.टी. रामाराव ने किया वहां भी लगातार चुनाव प्रचार कुछ इसी अंदाज में किया जा रहा है. वहां भी पार्टी कार्यकर्ता जनता के बीच जाकर कह रहे हैं कि इस बार 34 नहीं बल्कि पूरी सीटें 'दीदी' की झोली में डालनी होंगी. क्योंकि यह चुनाव राज्य में तृणमूल की सरकार बनाने भर सीमित नहीं है बल्कि राज्य को दिल्ली तक पहुंचाने की कवायद है. जितनी ज्यादा सीटें उतनी ही दमदार पीएम पद की दावेदारी होगी.वैसे बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का तो पता नहीं लेकिन केसीआर कई बार मिसाल पेश कर चुके हैं कि वे आज की नहीं कल की सोचते हैं. राज्य विधानसभा को समय से पहले भंग करने के अलावा केसीआर ने जिस तरह से न केवल आंध्र प्रदेश विधासभा के उप सभापति के पद से महज एक साल के भीतर न केवल इस्तीफा दिया बल्कि टीडीपी से नाता भी तोड़ लिया, वह केसीआर की दूरगामी सोच का ही नतीजा है. वे जानते थे जिस तरह से अलग राज्य की मांग उठ रही आज नहीं तो कल तेलंगाना राज्य बनेगा. आंध्र प्रदेश में टीडीपी में चंद्र बाबू नायडू की पोजिशन में आना मुश्किल था. इसलिए उन्होंने तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन किया. फिर करीमनगर से चुनाव लड़े. यूपीए-1 में मंत्री भी रहे. लेकिन फिर दो साल में यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि केंद्र अलग राज्य की मांग नहीं सुन रहा है.***
(责任编辑:लक्ष्मी पूजन मुहूर्त)