पहली बार 2002 में कैलाश पर्वत को देखने पर मिलन मुदगिल बहुत अभिभूत नहीं हुए थे. उस क्षेत्र की बाद की यात्राओं के दौरान ही इस ग्राफिक डिजाइनर ने अपने अनुभवों का वर्णन करने के लिए ''विशेष’’ और ''अतिसुंदर’’ जैसे शब्दों का उपयोग करना शुरू किया. मुदगिल कहते हैं,देवत्वसेपरे ''यह ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है कि कौन-सी खास चीज ने भीतर से वह भाव पैदा किया.लेकिन मुझे लगता है कि प्राकृतिक सुंदरता आप के भीतर कुछ हलचल पैदा करती है, और आप पूर्व के अपने अनुभवों से उस भावना को 'आध्यात्मिक’ कहना शुरू कर देते हैं.’’ पिछले अगस्त में दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में मुदगिल ने 2002 और 2007 के बीच कैलाश-मानसरोवर की ली अपनी तस्वीरों की प्रदर्शनी लगाई. उनकी तस्वीरें हमें पहले तिब्बती भूगोल पर विचार करते हुए हिंदू मिथकों से इतर सोचने को विवश करती हैं.मुदगिल को याद है कि करीब 20 साल पहले, सुबह के तीन बजे दिमाग के अंदर से आई एक जोरदार आवाज के साथ उनकी नींद खुल गई थी. यह उनके अचेतन का स्पष्ट निर्देश था—''आपको कैलाश पर एक किताब लिखनी चाहिए.’’ अपना शोध शुरू करते ही उन्होंने पाया कि कैलाश पर बहुत सारा साहित्य धार्मिकता की दृष्टि के साथ था, ''ये सभी पुस्तकें इस क्षेत्र की आध्यात्मिकता पर केंद्रित थीं, इसे ब्रह्मांड के केंद्र के रूप में बताती हैं, आदि. मैं चाहता था कि मेरे प्रोजेक्ट की अपनी कोई विशेषता, अलग पहचान हो.’’कई अन्य फोटोग्राफरों की तरह, मुदगिल खुद को या अपनी तस्वीरों को अपनी प्रदर्शनी का नायक बना सकते थे, लेकिन कैलाश-मानसरोवर: ए फोटोग्राफिक जर्नी दो खोजकर्ताओं—स्वेन हेडिन और स्वामी प्रणवानंद की यात्रा पर केंद्रित है. स्वीडिश नागरिक हेडिन ''दुनिया के नक्शे में उस खाली जगह को भरने के लिए’’ तिब्बत आए थे. वहीं, उनके दो दशक बाद 1928 में इस क्षेत्र में आए तपस्वी यात्री प्रणवानंद ने हेडिन की कथित चूकों को सही करने की कोशिश की.एक फोटोग्राफर और शोधकर्ता के रूप में, मुदगिल ने खुद को भावुकता से कितना दूर रखा है, यह उनके शो का कैटलॉग देखने मात्र से समझ आ जाता है. वैसे वे हेडिन और प्रणवानंद का सम्मान करते हैं—आखिरकार, उन्होंने कैलाश-मानसरोवर क्षेत्र के भूगोल की ''खोज’’ की—पर वे यह कहने में भी नहीं हिचकिचाते कि उन दोनों ने कुछ मामलों में बहुत उतावलापन दिखाया. मसलन, हेडिन और प्रणवानंद ब्रह्मपुत्र की उत्पत्ति स्थल को लेकर असहमत थे. मुदगिल न सिर्फ हमें उसका संदर्भ बताते हैं, बल्कि विषय को लेकर स्पष्टता भी लाने की कोशिश करते हैं.बहुत से हिंदुओं का मानना है कि कैलाश वह पर्वत है जहां शिव निवास करते हैं, मानसरोवर वह जगह है जहां गंगा को शिव ने नियंत्रित किया, लेकिन मुदगिल की तस्वीरों में, पहाड़ और झील प्राकृतिक आश्चर्य पहले हैं, आस्था के केंद्र बाद में. हमें यहां खानाबदोश दिखते हैं, तीर्थयात्री नहीं.उनकी ये तस्वीरें 15-20 साल पहले ली गईं और मुदगिल कहते हैं कि ये पहले से ही अभिलेखीय हैं. ''2007 के बाद से, तिब्बत कई बार बदला है. मैं आखिरी बार 2018 में कैलाश गया था, और वहां मोबाइल फोन और पक्की सड़कों से लेकर चार सितारा होटलों और वातानुकूलित बसों तक, सब कुछ था.’’मुदगिल कहते हैं कि हिंदू अक्सर एक एजेंडे के साथ कैलाश-मानसरोवर जाते हैं, ''वे मानते हैं कि उनके भगवान का तिब्बत में निवास है. इसलिए, वे वहां अपने भगवान से मिलने जाते हैं, किसी सांस्कृतिक डुबकी के लिए नहीं.’’ कई पर्यटन पैकेज अब कैलाश-मानसरोवर को बहुत समीप से दिखाने के वादे करते हैं, पर यदि आप मुदगिल के शो को देखना शुरू करते हैं, तो आप निश्चित रूप से ऐसा महसूस करेंगे जैसे आप कैलाश मानसरोवर पर ही तो हैं.
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