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Russia Ukraine War: जब यूक्रेन नहीं सदस्य देश, तो NATO क्यों रूस से लड़ रहा उसकी लड़ाई?

时间:2023-09-19 11:54:00 出处:आपलं २०२३阅读(143)

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) यूक्रेन-रूस युद्ध का केंद्र बिंदु बन गया है. नाटो की ओर से भी जंग की घोषणा कर गई है. नाटो की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में उत्तरी अमेरिका और यूरोप के 12 सदस्यों के साथ हुई थी. अब इसमें 30 सदस्य हैं,जबयूक्रेननहींसदस्यदेशतोNATOक्योंरूससेलड़रहाउसकीलड़ाई लेकिन यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है. यह 2008 से नाटो का सदस्य बनने की प्रतीक्षा कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने यूक्रेन की सदस्यता कार्य योजना (एमएपी) पर जोर दिया था, लेकिन जर्मनी और फ्रांस ने इस कदम को रोक दिया. उनका कहा था कि यूक्रेन को कुछ पात्रता-मानदंडों को पूरा करना होगा.नाटो चार्टर का अनुच्छेद 5 इस सैन्य गठबंधन की आधारशिला है.यह सामूहिक रक्षा के सिद्धांत की बात करता है, इसे नाटो का दिल घोषित करता है. यह नाटो के सदस्य देशों को एक-दूसरे की रक्षा करने और गठबंधन के भीतर एकजुटता की भावना स्थापित करने के लिए बाध्य करता है. इसका मतलब यह है कि अगर किसी सदस्य देश पर गैर-सदस्य देश द्वारा हमला किया जाता है, तो सभी सदस्य इसे अलग-अलग देशों पर हमला मानेंगे और सैन्य रूप से जवाब देंगे. लेकिन अनुच्छेद 5 यूक्रेन जैसे गैर-सदस्य देश पर लागू नहीं होता है.1980 के दशक तक केवल तीन देश - ग्रीस, पश्चिम जर्मनी और स्पेन नाटो के नए सदस्य बने. फिर एकीकरण के बाद 1990 में जर्मनी इसका सदस्य बना. 1997 के बाद अचानक नाटो के विस्तार ने गति पकड़ी. पहले लक्षित सदस्य चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड (1999) थे, जो कभी रूसी प्रभाव में थे. इसके बाद पूर्व सोवियत घटक इसके दायरे में आ गए.नाटो में अब 30 देश सदस्य हो चुके हैं, यह संख्या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कार्यकाल के दौरान दोगुनी हो गई है.नए सदस्यों में अधिकांश पूर्व सोवियत संघ के सदस्य हैं.यह सोवियत संघ का पतन ही था, जिसने नाटो को अपनी भूमिका की फिर से रणनीतिक बनाने के लिए प्रेरित किया.सदस्य देशों के हितों की रक्षा के लिए गैर-सदस्य देशों को शामिल करने के लिए नाटो चार्टर के अनुच्छेद 5 की व्याख्या की गई थी.साथ ही, अगर कोई सदस्य कहीं नाटो का हस्तक्षेप चाहता है, तो प्रस्ताव पर चर्चा की जा सकती है और इसका संचालन परिषद द्वारा अनुमोदित किया जा सकता है.1990 के दशक की शुरुआत में इराक पर आक्रमण एक उदाहरण है जो नाटो चार्टर के मुताबिक नहीं हुआ था. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी के बाद 1999 में कोसोवो में दखल दिया गया. उस समय, एक सिद्धांत सामने आया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का जनादेश मिलने के बाद नाटो युद्ध में जा सकता है. ऐसा सिद्धांत नाटो को रूस या चीन के वीटो पर निर्भर बना देता, इसलिए यह विचार खारिज कर दिया गया था. यही कारण है कि नाटो ने यूक्रेन के रूसी युद्ध से लड़ने का फैसला किया है.वास्तव में, नाटो ने पहली बार सैन्य कार्रवाई के लिए अनुच्छेद 5 को 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका पर 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद लागू किया था. बाद में, नाटो ने सीरिया-इस्लामिक युद्ध में हस्तक्षेप करने का सामूहिक निर्णय लिया. अब नाटो ने यूक्रेन-रूस संकट में हस्तक्षेप किया है.नाटो यूक्रेन में रूसी आक्रमण को अपने सहयोगी के लिए एक खतरे के रूप में देख रहा है जो 1991 में नाटो में शामिल होने की कोशिश शुरू की थीऔर 1994 में नाटो कार्यक्रम में भागीदारी के लिए साझेदारी पर हस्ताक्षर किए थे. रूस ने भी इसके लिए हस्ताक्षर किए. रूस और यूक्रेन दोनों की निगाहें नाटो की सदस्यता पर हैं लेकिन यूक्रेन ने वास्तव में इसके लिए आवेदन किया था. नाटो सदस्यता के लिए उसका आवेदन लंबित है. इसके अध्यक्ष जेलेंस्की ने हाल ही में सदस्यता कार्य योजना (एमएपी) के फैसले में तेजी लाने के लिए फिर से अपील की है.रूस और नाटो ने सोवियत संघ के पतन के बाद नाटो-रूस परिषद (एनआरसी) नामक एक परामर्श मंच का गठन किया, लेकिन यूक्रेन को लेकर नाटो के साथ रूस के संबंध अशांत रहे. 1999 में कोसोवो संकट और 2008 में जॉर्जिया के खिलाफ रूस की सैन्य कार्रवाई के दौरान संबंध शत्रुतापूर्ण हो गए. पुतिन द्वारा 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने का आदेश देने के बाद नाटो ने रूस को सहयोग परिषद से हटा दिया लेकिन यूक्रेन नाटो का एक इच्छुक सहयोगी बना रहा. रूस शीत युद्ध की लौ जलाने के लिए अमेरिकी-प्रभुत्व वाले सैन्य गठबंधन का परीक्षण करता रहा. नतीजा यह है कि यूक्रेन नाटो-रूस सैन्य लड़ाई के लिए युद्ध का मैदान बन गया है.

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